Weather And Gratitude
A gratitude and self reflection on mundane yet blissful surroundings which often goes without much admiration. This poem is in awe of such a day which praises the gleeful weather change on a day.
सुबह आंख खुलते ही
एक अच्छी नींद की ताज़गी के बाद
कदम चलते हैं
घर के उस हिस्से की और
जहां नजरें बाहर का नज़ारा समेट
मन को खुशी के झोंके से जगाती है।
रोशनी से शुरू हुआ दिन
कभी एक अच्छा सा मोड़ लेता है
जब पड़ने वाली धूप
एक खुशनुमा घटा से झांकती है
और आने वाली बूंदों का पैगाम दे जाती है ।
आज कुछ ऐसा ही नज़ारा मिला
जब दोपहर की धूप नहीं दिखाती अपना रूप
हवाओं में भरी ठंडक और धुन
धीमी रफ्तार से आपको छू
मन में कुदरत के लिए आभार भर जाती है ।
बादलों में आया सांवला सा पन
मन को कुछ यूं रंगता है
कि लबों पे मुस्कुराहट भर
आंखो को भींच कर
बस वहीं बस जाने का दिल सा करता है ।
ऐसे पल हर पल नहीं मिल सकते
जब मिले
तब खुद को उन्हें सौंप दो
आखिर उसके बाद जो पल मिलते है
वो तो जिंदगी की दौड़ और उधेड़बुन में घुल जाते हैं ।